मित्रों आज का लेख एक ऐसे विषय पर है जिसको लेकर कुछ बुद्धिजीवी लोग सनातन धर्म पर समय - समय पर कुठाराघात करते आए हैं, सनातन धर्म को स्त्री विरोधी और अमानवीय धर्म बताने का प्रयास करते आए हैं।
और यह विषय है ‘सतीप्रथा’ जिसमें तथाकथित तौर पर विधवा स्त्री को पति के शव के साथ जला दिया जाता था किन्तु यह कितना सत्य और कितना मिथ्या है इस बात पर चिंतन करेंगे।
मित्रों सर्वप्रथम कहना चाहूंगा कि इस प्रथा का नाम सती प्रथा इसीलिए पड़ा क्योंकि प्रजापति दक्ष की पुत्री माता सती शिव जी अर्थात अपने पति का अपमान हो जाने के कारण सभी देवताओं के समक्ष पिता के द्वारा कराए जा रहे के हवनकुंड में भष्म हो गई थी इसलिए इस प्रथा का नाम सती प्रथा रखा गया जो वह कहीं से भी उचित और तथ्य संगत नहीं लगता है क्योंकि उन्होंने पति के जीवित अवस्था में ही पति के अपमान के कारण आत्मदाह किया था ना कि पति के शव के साथ।
मित्रों रामायण, महाभारत, गीता, और मनु स्मृति आदि किसी भी पुस्तक में इसका उल्लेख नहीं मिलता है। ना तो महाराज दशरथ की मृत्यु के पश्चात माता कौशल्या, सुमित्रा और केकई सती का अवलंब किया और ना ही महाभारत में सत्यवती और कुंती ने इसको अपनाया कुछ मंदबुद्धि लोग कहते हैं कि पांडू पत्नी माद्री सती हुई थी जबकि सत्य यह है कि माद्री ने पांडु की मृत्यु का कारण स्वयं को समझकर अपने उसके शव के साथ आत्मदाह कर लिया था। इसे सती की संज्ञा दे दी गई वहीं माद्री के प्रेम को अमानवीय अपराध के रूप में देखते है धर्म के शत्रु।
सारी जानकारी वीडियो में दी हुई है। वीडियो देखें।
सती प्रथा का वास्तविक अर्थ क्या है?
उत्तर:- भारत के कई आदिवासी इलाकों में सती प्रथा है लेकिन जैसे सती प्रथा को बताया गया है वैसे नहीं। यहां विधवा स्त्री संस्कृत में मंत्र पढ़ते हुए पति के चिता के चारों ओर चक्कर काटती है और हर चक्कर में एक प्रश्न अपने संबंधी से करती है जैसे:- पुत्र, पुत्री, भाई, समाज आदि और प्रश्न यह होता है कि क्या आप मेरा भरण-पोषण करोगे अब मैं विधवा हूं यदि कोई हां कहता है तो प्रदक्षिणा रोक देती है किंतु जब कोई सहमत नहीं होता है तब वह 7 प्रदक्षिणा करके अपने गांव के मंदिर में चली जाती है और वहीं ईश्वर चरण में जीवन यापन करती है। इस स्त्री को सती कहा जाता है। यही नहीं सारा समाज मंदिर आता है तब उस स्त्री की भी चरण वंदना करता है और देवी मान कर सम्मान दिया जाता है। यह सती प्रथा का वास्तविक अर्थ है।
कई लोग जोहर को सती प्रथा से जोड़ते हैं जबकि जौहर अपनी लाज मर्यादा को आक्रमणकारी भेड़ियों से बचाने के लिए हुआ करते थे। यह मुगल और आंग्ल आक्रमणकारियों की बलात्कारी प्रवृत्ति का परिणाम था ना कि सत्य सनातन धर्म की देन।
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